परिचय
म्यूचुअल फंड निवेशकों के बीच एक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय निवेश साधन के रूप में उभर कर आया है। म्यूचुअल फंड एक प्रकार की निवेश योजना है जहां कई निवेशकों के धन को एकत्र किया जाता है और एक पेशेवर फंड मैनेजर द्वारा शेयर, बॉन्ड, या अन्य संपदाओं में निवेश किया जाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, निवेशक न केवल अपने निवेश के जोखिम को फैलाते हैं बल्कि विशेषज्ञ प्रबंधन की सहायता से बेहतर रिटर्न की भी अपेक्षा कर सकते हैं।
म्यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले यह समझना महत्वपूर्ण है कि विभिन्न प्रकार के रिटर्न किस प्रकार काम करते हैं। रिटर्न केवल निवेश किए गए धन के मूल्य में वृद्धि को ही शामिल नहीं करते, बल्कि उनमें डिविडेंड और पूंजीगत लाभ जैसे विभिन्न स्रोत भी शामिल होते हैं। निवेशकों को यह समझना चाहिए कि कैसे विभिन्न प्रकार के रिटर्न उनकी निवेश रणनीति और वित्तीय लक्ष्यों पर प्रभाव डाल सकते हैं।
इस ब्लॉग पोस्ट का उद्देश्य निवेशकों को म्यूचुअल फंड में मिलने वाले विभिन्न प्रकार के रिटर्न की पूरी जानकारी देना है। यह समझना कि ये रिटर्न कैसे गिने जाते हैं और उनका क्या महत्त्व है, उन निवेशकों के लिए अत्यंत आवश्यक है जो अपने निवेश से अधिकतम लाभ प्राप्त करना चाहते हैं। जिससे निवेशक इस जानकारी का उपयोग करके अपने निवेश निर्णयों को बेहतर ढंग से ले सकें और अपने वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।
Absolute Returns
एक म्यूचुअल फंड निवेश का परिणाम है, जो विशेष रूप से एक ख़ास समयावधि में हुए कुल लाभ या हानि को दर्शाता है। इसका उपयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि किसी विशिष्ट निवेश ने एक निर्दिष्ट अवधि में कितनी वृद्धि (या कमी) की है। इसे आसानी से गणितीय रूप में व्यक्त किया जा सकता है: निवेश की समाप्ति मूल्य से प्रारंभिक मूल्य को घटाकर, प्रारंभिक मूल्य पर विभाजित करके, और फिर परिणाम को 100 से गुणा करके।
एब्सोलूट रिटर्न की परCalculation के लिए यह सूत्र होता है:
Absolute Returns = (समाप्ति मूल्य – प्रारंभिक मूल्य) / प्रारंभिक मूल्य x 100
उदाहरण के तौर पर, अगर एक निवेश की शुरुआत 1,00,000 रुपए से की गई और एक वर्ष के बाद उसका मूल्य 1,20,000 रुपए हो जाता है, तो एब्सोलूट रिटर्न होगा:
एब्सोलूट रिटर्न = (1,20,000 – 1,00,000) / 1,00,000 x 100 = 20%
एब्सोलूट रिटर्न उन निवेशों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है जो अल्पकालिक होते हैं, जैसे कि एक वर्ष के भीतर की जा रही अवधि। इस समयावधि में निवेशकों के लिए बाजार की स्थिति को समझना और तदनुसार अपने निवेश से होने वाले सटीक लाभ की पहचान करना महत्वपूर्ण होता है। इसके अलावा, एब्सोलूट रिटर्न मौजूदा म्यूचुअल फंड की तुलना करते समय एक आम उपयोग किया जाने वाला मापदंड है।
भारत में, जहाँ निवेशक विभिन्न प्रकार के अल्पकालिक निवेश विकल्पों को चुनने के लिए स्वतंत्र होते हैं, एब्सोलूट रिटर्न एक उपयोगी उपकरण बन जाता है। उदाहरण के लिए, एक निवेशक जिसने जनवरी 2022 में एक निश्चित म्यूचुअल फंड में निवेश किया था, और दिसंबर 2022 तक, उस फंड की कुल वृद्धि देखी, तो वह अपने अल्पकालिक निवेश के लिए एब्सोलूट रिटर्न का उपयोग करके निर्णय ले सकता है।
इस प्रकार, एब्सोलूट रिटर्न निवेशकों को उनके पोर्टफोलियो के प्रदर्शन को ट्रैक करने और उनकी निवेश रणनीतियों को संरेखित करने में सहायता करता है, जिससे वे अधिक सूचित निवेश निर्णय ले सकते हैं।
Annualized Returns
एन्यूलाइज्ड रिटर्न, जिसे वार्षिकीकृत रिटर्न भी कहा जाता है, किसी निवेश के एक विशिष्ट अवधि में अर्जित रिटर्न को संकेतित वार्षिक दर के रूप में परिभाषित करता है। यह रिटर्न की गणना एक वर्ष के समकक्ष में परिवर्तित करता है, जिससे निवेशकों को विभिन्न समयावधियों के रिटर्न की तुलनात्मक समीक्षा करने की सुविधा मिलती है। इसकी परिकल्पना यह है कि निवेशक वार्षिक दर से उत्पन्न आय का सामंजस्य समझ सके, जिससे दीर्घकालिक निवेश निर्णयों को प्रभावी ढंग से लिया जा सके।
एन्यूलाइज्ड रिटर्न, एब्सोलूट रिटर्न से इस प्रकार भिन्न है कि यह निवेश की अवधि में दर की स्थिरता को ध्यान में रखता है। विपरीत स्थिति में, एब्सोलूट रिटर्न केवल प्रारंभ और समाप्ति बिंदुओं के बीच के अंतर को मापता है, चाहे वह अवधि एक वर्ष से अधिक हो या कम हो। उदाहरण के लिए, यदि कोई निवेश तीन वर्षों में 30% का एब्सोलूट रिटर्न उत्पन्न करता है, तो यह वार्षिक रिटर्न नहीं दर्शाता। एन्यूलाइज्ड रिटर्न उस 30% को एक वार्षिक दर में परिवर्तित कर देता है।
दीर्घकालिक निवेशकों के लिए एन्यूलाइज्ड रिटर्न महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह निवेश के सापेक्ष स्थायित्व और वृद्धि मापदंड प्रस्तुत करता है। यह दीर्घकालिक योजना में मदद करता है, जैसे रिटायरमेंट प्लानिंग या बच्चों की शिक्षा के लिए निवेश।
एन्यूलाइज्ड रिटर्न की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का उपयोग किया जा सकता है:
Annualized Return = [(1 + Total Return) ^ (1/Number of Years)] – 1
एक सरलीकृत उदाहरण के लिए मान लें कि किसी निवेशक ने ₹10,000 निवेश किया और तीन वर्षों के दौरान ₹13,000 प्राप्त हुआ। इस स्थिति में:
Total Return = (End Value – Initial Value) / Initial Value = (₹13,000 – ₹10,000) / ₹10,000 = 0.3 (या 30%)
Number of Years = 3
Annualized Return = [(1 + 0.3) ^ (1/3)] – 1 ≈ 0.091 या 9.1%
इस प्रकार, तीन वर्षों के दौरान 30% का एक एब्सोलूट रिटर्न वार्षिक आधार पर लगभग 9.1% के एन्यूलाइज्ड रिटर्न के समकक्ष होगा। यह विवरण निवेशकों को समय के साथ निवेश के प्रदर्शन का व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
CAGR (Compound Annual Growth Rate)
सीएजीआर, या कंपाउंड एन्यूल ग्रोथ रेट, प्रमुख रिटर्न मैट्रिक्स है जो दर्शाता है कि आपके निवेश ने कितनी स्थिरता से समय के साथ ग्रोथ की है। भारत में म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए, सीएजीआर एक शक्तिशाली उपकरण है जो पोर्टफोलियो परफॉर्मेंस का सटीक आकलन प्रदान करता है। यह रेट पूरे निवेश अवधि के दौरान वार्षिक ग्रोथ रेट को मापता है, इस प्रकार यह निवेश के वास्तविक प्रदर्शन को स्पष्ट करता है।
सीएजीआर की गणना एक सरल फार्मूले से की जाती है:
CAGR = [(अंतिम मूल्य / प्रारंभिक मूल्य) ^ (1 / अवधि) – 1]
माना कि आपने ₹1000 म्यूचुअल फंड में निवेश किया, और पाँच वर्षों बाद उसका मूल्य ₹1500 हो गया। सीएजीआर की गणना इस प्रकार होगी:
CAGR = [(1500 / 1000) ^ (1/5) – 1] = 0.0845 या 8.45%
सीएजीआर एकल अवधि के विभिन्न निवेश विकल्पों का तुलनात्मक विश्लेषण करने में मदद करता है। इसका सबसे बड़ा लाभ इसकी सरलता और स्पष्टता है। यह निवेशकों को विभिन्न वर्षों के उथल-पुथल और रिटर्न की विविधता से बचाकर एक समानकृत ग्रोथ रेट प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, सीएजीआर लंबी अवधि के फाइनेंशियल प्लानिंग के लिए बहुत उपयुक्त है, क्योंकि यह इंफ्लेशन और अन्य मार्केट वोलाटिलिटी को ध्यान में रखता है।
हालांकि, सीएजीआर का अपने सीमा भी है। यह म्यूचुअल फंड के वोलाटिलिटी और अल्पकालिक बदलावों को नजरअंदाज कर सकता है। उत्पन्न डेटा स्थिर वृद्धि को प्रदर्शित कर सकता है, जबकि वास्तव में बाजार बड़े उतार-चढ़ाव से गुजरा हो सकता है। इसलिए, सीएजीआर का उपयोग अन्य विवेकपूर्ण मैट्रिक्स के साथ संयोजन में करने की सलाह दी जाती है।
अंततः, भारत में म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए सीएजीआर एक मूल्यवान संसाधन है, जो निवेश निर्णयों को अधिक जानकारीपूर्ण और तर्कसंगत बनाने में मदद करता है।
XIRR (Extended Internal Rate of Return)
एक्सआईआरआर (एक्सटेंडेड इंटरनल रेट ऑफ रिटर्न) एक उन्नत वित्तीय मापदंड है जो निवेश के विविध समय क्षेत्रों में किये गए नकदी प्रवाह को समायोजित करता है। इसका उपयोग विशेष रूप से सिप (सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) रिटर्न के आकलन में किया जाता है, जहां नियत समय पर निवेश किया गया होता है। एक्सआईआरआर की गणना में प्रत्येक निवेश और विमोचन (रिडेम्पशन) के विशिष्ट तारीखें और राशि को ध्यान में रखा जाता है, जिससे यह विस्तारित अवधि की आंतरिक दर (रेट) को अधिक सटीकता से निर्धारित करता है।
सीएजीआर (कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट) और एक्सआईआरआर के बीच एक मुख्य अंतर यह है कि सीएजीआर एक निश्चित अवधि के लिए एक समान वार्षिक वृद्धि दर का प्रतिनिधित्व करता है। दूसरी ओर, एक्सआईआरआर असंबद्ध और असमान नकदी प्रवाह (कैश फ्लोज) को मान्यता देता है और विभिन्न समयांतराल में किये गए निवेशों को समेकित रूप से समझता है। यह मापदंड सीएजीआर की तुलना में अधिक यथार्थपरक चित्र प्रस्तुत करता है, विशेषकर जब निवेश और मोचन अनियमित तरीके से होते हैं।
म्यूचुअल फंड निवेश में एक्सआईआरआर की गणना का एक उदाहरण समझते हैं:
मान लीजिए कि आप किसी म्यूचुअल फंड स्कीम में हर महीने ₹1,000 का निवेश करते हैं। आपने एक साल में कुल 12 किश्तें जमा की हैं और इस अवधि के अंत में ₹13,000 की कुल राशि प्राप्त होती है। एक्सआईआरआर का उपयोग करके, हम प्रत्येक किश्त की निवेश तिथि और अंत में मिलने वाली राशि के आधार पर वार्षिक रिटर्न दर को गणना करते हैं। इस प्रक्रिया में, एक्सआईआरआर विभिन्न तारीखों पर किए गए योगदान को समझता है और संभावित वार्षिक रिटर्न को निर्धारित करता है, जिससे आपको अधिक सटीक और स्पष्ट जानकारी मिलती है कि आपका निवेश कैसे प्रदर्शन कर रहा है।
Rolling Returns
रोलिंग रिटर्न एक ऐसा उपाय है जो निवेशकों को एक निश्चित अवधि के दौरान फंड के प्रदर्शन को समझने में मदद करता है। यह उपाय फंड के प्रदर्शन का अधिक व्यापक दृश्य प्रस्तुत करता है क्योंकि यह केवल एक विशिष्ट समय सीमा पर निर्भर नहीं होता। उदाहरण के लिए, अगर हम एक वर्ष के रोलिंग रिटर्न को देखें, तो यह पिछले कई वर्षों की समान अवधि के रिटर्न का औसत प्रस्तुत करता है, जिससे अस्थिरता के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
रोलिंग रिटर्न का प्रमुख लाभ यह है कि यह निवेशकों को फंड के दीर्घकालिक प्रदर्शन को बेहतर तरीके से समझने में मदद करता है। समय के साथ फंड के प्रदर्शन में होने वाले बदलावों को नजरअंदाज करते हुए, यह उपाय औसत रिटर्न का एक निरंतर भाग प्रस्तुत करता है। इस प्रकार, यह उपाय उन निवेशकों के लिए उपयोगी है जो दीर्घकालिक निवेश दृष्टिकोण अपनाते हैं और अस्थिरता से प्रभावित नहीं होना चाहते।
इसके विपरीत, अन्य प्रकार के रिटर्न जैसे कि पॉइंट-टू-पॉइंट रिटर्न या ट्रेलिंग रिटर्न, अक्सर समय की एक विशिष्ट सीमा में फंड के प्रदर्शन को मापते हैं। इन्हें देखते समय विशिष्ट समय सीमा के दौरान मिलने वाले रिटर्न को ध्यान में रखा जाता है जो कभी-कभी निदानात्मक हो सकते हैं लेकिन फंड के वास्तविक दीर्घकालिक प्रदर्शन की सही तस्वीर पेश नहीं करते। इस कारण से, रोलिंग रिटर्न इन अन्य उपायों के मुकाबले अधिक विश्वसनीय हो सकता है।
रोलिंग रिटर्न को समझकर निवेशक फंड के प्रदर्शन को विभिन्न समयावधियों में अनुकरण कर सकते हैं और इसके माध्यम से फंड के प्रदर्शन की स्थिरता और निरंतरता का आंकलन कर सकते हैं। इससे उन्हें अपने निवेश निर्णयों को बेहतर बनाने में सहायता मिलती है।
Point-to-Point Returns
म्यूचुअल फंड में निवेश करने के दौरान विभिन्न प्रकार के रिटर्न निर्धारित करने के तरीके होते हैं, जिनमें से एक प्रमुख तरीका है पॉइंट-टू-पॉइंट रिटर्न। यह विधि किसी विशेष समयावधि के शुरुआत और अंत में फंड की कीमत के बीच के फर्क को मापता है। सरल शब्दों में, पॉइंट-टू-पॉइंट रिटर्न से पता चलता है कि आपके निवेश ने एक निर्धारित अवधि के दौरान कितना लाभ या हानि कमाया है।
पॉइंट-टू-पॉइंट रिटर्न की गणना करने के लिए, निवेशक फंड के यूनिट की प्रारंभिक और अंत कीमत को देखते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आपने एक म्यूचुअल फंड के यूनिट को ₹100 की कीमत पर खरीदा है और एक साल बाद उसकी कीमत ₹120 होती है, तो पॉइंट-टू-पॉइंट रिटर्न 20% होगा। इससे निवेशकों को यह समझने में मदद मिलती है कि समयावधि के दौरान उनके निवेश की लागत कितनी बदली है।
पॉइंट-टू-पॉइंट रिटर्न का उपयोग विशेष रूप से तब फायदेमंद होता है जब निवेशक अल्पकालिक या लंबी अवधि के प्रदर्शन को विश्लेषित करना चाहते हैं। यह विधि निवेशकों को व्यक्तिगत समयसीमा और बाजार की स्थिति के आधार पर अपने पोर्टफोलियो का विश्लेषण करने का अवसर देती है। इस तरीके की सहायता से निवेशक बेहतर निर्णय ले सकते हैं कि कब निवेश करना है और कब नहीं।
वास्तविक जीवन के परिप्रेक्ष्य में, मान लीजिए कि एक निवेशक तीन साल पहले एक इक्विटी म्यूचुअल फंड में ₹10,000 निवेश करता है, और वर्तमान में वह निवेश ₹15,000 हो गया है। पॉइंट-टू-पॉइंट रिटर्न की गणना इस प्रकार की जा सकती है: [(15,000 – 10,000) / 10,000] * 100, जिसका अर्थ है 50% का रिटर्न।
समग्र रूप से, पॉइंट-टू-पॉइंट रिटर्न की जानकारी निवेशकों को म्यूचुअल फंड के लंबे और छोटे अवधि के प्रदर्शन का मापन करने की कुशलता प्रदान करती है, जिससे वे अपने वित्तीय लक्ष्य प्राप्त करने के लिए बेहतर योजना बना सकते हैं।
Total Returns (TRI)
कुल रिटर्न इंडेक्स (टीआरआई) एक व्यापक मापदंड है जो निवेशकों को म्यूचुअल फंड का समग्र प्रदर्शन समझने में मदद करता है। यह न केवल उस पूंजी वृद्धि को शामिल करता है जो स्टॉक या अन्य निवेश से प्राप्त होती है, बल्कि लाभांश और अन्य वितरणों को भी ध्यान में रखता है। इस प्रकार, कुल रिटर्न इंडेक्स (टीआरआई) निवेश के वास्तविक लाभ को प्रदर्शित करने में सक्षम होता है, जो कि केवल पूंजी मूल्यांकन से मापित नहीं किया जा सकता है।
लाभांश और अन्य वितरणों को कुल रिटर्न में शामिल करना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वे निवेश से प्राप्त वास्तविक आय का हिस्सा होते हैं। जब कंपनियाँ लाभांश देती हैं, तो वे अपने मुनाफे का एक हिस्सा शेयरधारकों को लौटाती हैं। इस प्रकार के वितरण, यदि टीआरआई में शामिल नहीं किए जाते, तो निवेशकों को म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन का अधूरा चित्र मिलेगा। इसका अर्थ है कि केवल पूंजी मूल्यांकन के आधार पर प्रदर्शन मापने से निवेशकों को भ्रामक आंकड़े प्राप्त हो सकते हैं, जिससे निवेश निर्णय प्रभावित हो सकते हैं।
भारतीय बाजार में, म्यूचुअल फंड के कुल रिटर्न इंडेक्स का एक प्रचलित उदाहरण है NIFTY 50 TRI। यह सूचकांक NIFTY 50 के समान ही है, लेकिन इसमें ने केवल पूंजी वृद्धि शामिल होगी, बल्कि लाभांश और अन्य वितरणों को भी समाहित किया गया है। इस प्रकार, NIFTY 50 TRI निवेशकों को NIFTY 50 के प्रदर्शन का अधिक संपूर्ण और प्रामाणिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
अतः, कुल रिटर्न (टीआरआई) न केवल म्यूचुअल फंड की वास्तविक लाभप्रदता को दर्शाता है, बल्कि निवेशकों को सही आंकलन क्षमता प्रदान करता है, जिससे वे सूचित और सटीक निवेश संबंधी निर्णय ले सकें।
Inflation-Adjusted Returns
भारत में म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय महंगाई-समायोजित रिटर्न का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। महंगाई, या मुद्रास्फीति, आपके निवेश के वास्तविक मूल्य को क्षीण कर सकती है। इसलिए, यह जानना आवश्यक है कि महंगाई के प्रभाव को कैसे मापा जाए और महंगाई-समायोजित रिटर्न की गणना कैसे की जाए।
महंगाई-समायोजित रिटर्न (Inflation-Adjusted Return) को कभी-कभी “वास्तविक रिटर्न” भी कहा जाता है। यह रिटर्न मूल्यवृद्धि की दर से समायोजित कर निवेशकों को उनके निवेश की वास्तविक क्रय शक्ति का आकलन करने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी म्यूचुअल फंड का वार्षिक रिटर्न 10% है, लेकिन उसी अवधि की महंगाई दर 4% है, तो महंगाई-समायोजित रिटर्न मात्र 6% होगा। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा गणना की जा सकती है:
वास्तविक रिटर्न = [(1 + नाममात्र रिटर्न) / (1 + महंगाई दर)] – 1
महंगाई-समायोजित रिटर्न निवेशकों को दीर्घकालिक धन सृजन की समीक्षा करने में मदद करता है। नाममात्र रिटर्न अक्सर उच्च प्रतीत हो सकते हैं, लेकिन जब महंगाई को ध्यान में रखते हुए उनका विश्लेषण किया जाता है, तो यह साफ होता है कि कितना वास्तविक लाभ हो रहा है। उदाहरण के लिए, 20 वर्षों तक 8% का नाममात्र रिटर्न आकर्षक लग सकता है, लेकिन यदि इस अवधि में महंगाई दर औसतन 5% रही, तो वास्तविक रिटर्न अपेक्षाकृत कम होगा।
म्यूचुअल फंड में निवेश का मुख्य उद्देश्य दीर्घकालिक धन सृजन और वित्तीय लक्ष्यों की प्राप्ति है। इस संदर्भ में, महंगाई-समायोजित रिटर्न का आकलन निवेशकों को उनके दीर्घकालिक लक्ष्यों के प्रति अधिक सचेत बनाता है और बेहतर योजना निर्माण में सहयोग करता है। म्यूचुअल फंड चुनते समय निवेशकों को महंगाई-समायोजित रिटर्न का अवश्य ध्यान रखना चाहिए ताकि वे अपनी वास्तविक धन वृद्धि का सही आकलन कर सकें।
निष्कर्ष
भारत में म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय विभिन्न प्रकार के रिटर्न को समझना न सिर्फ आवश्यक है, बल्कि यह एक सूझ-बूझ वाले निवेशक के रूप में निर्णय लेने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रिटर्न के प्रकार, जैसे कि कैपिटल गेन, डिविडेंड रिटर्न और संपूर्ण रिटर्न, निवेशकों को उनके निवेश को विविधता और तुलनात्मक लाभ की नजर से देखने में सक्षम बनाते हैं।
कैपिटल गेन रिटर्न उन निवेशकों के लिए आकर्षक होते हैं जो लंबी अवधि में अपने निवेश की वृद्धि देखना चाहते हैं। यह रिटर्न फंड के नेट एसेट वैल्यू (NAV) में वृद्धि के माध्यम से प्राप्त होता है। दूसरी ओर, डिविडेंड रिटर्न उन निवेशकों के लिए लाभदायक होते हैं जो नियमित आय की तलाश में होते हैं, जिससे उन्हें स्थिर आय मिलती है। संपूर्ण रिटर्न इन दोनों प्रकारों का सम्मिलित रूप है, जिसमें पूंजीगत लाभ और डिविडेंड दोनों शामिल होते हैं।
निवेश के उद्देश्यों और जोखिम सहनशीलता के आधार पर उपयुक्त म्यूचुअल फंड चुनना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर लंबी अवधि में उच्च रिटर्न की खोज कर रहे हैं, तो इक्विटी म्यूचुअल फंड आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप हो सकते हैं। वहीं दूसरी ओर, अगर आप सुरक्षित और नियमित आय की तलाश में हैं, तो डेब्ट म्यूचुअल फंड आपकी पसंद बन सकते हैं।
अनुभवी निवेशकों के लिए, विभिन्न रिटर्न प्रकारों को ध्यान में रखते हुए पोर्टफोलियो को विविध बनाना लाभदायक हो सकता है। इससे न केवल जोखिम कम होता है, बल्कि अलग-अलग निवेश विकल्पों से प्राप्त रिटर्न का संतुलन भी बनता है। अतः, एक समझदार और संतुलित दृष्टिकोण अपनाकर ही म्यूचुअल फंड में निवेश करना सर्वोत्तम साबित हो सकता है।